सिंधु सभ्यता का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन तथा नगर निर्माण
हड़प्पा सभ्यता(सिंधु सभ्यता)
1920 ई. के बाद सिन्धु नदी की घाटी का पता चला । सभ्यता के अवशेष सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों में मिले । अतः यह सभ्यता सिन्धु सभ्यता के नाम से प्रसिद्ध है । सर्वप्रथम 1920 ई . में सिन्धु की सहायक नदी रावी की घाटी में हड़प्पा का उत्खनन , दयाराम साहनी के नेतृत्व में हुआ । इससे ऐसा मालूम हुआ कि हजारों वर्ष पूर्व हड़प्पा उच्च नगरीय सभ्यता का केन्द्र था । इसके बाद 1922 ई . में राखालदास बनर्जी ने सिन्धु घाटी में स्थित मोहनजोदड़ो का उत्खनन कराया । इस प्रकार यहाँ और आसपास के क्षेत्रों में कई उत्खनन एवं अनुसंधान कार्य किये गये जिससे सिन्धु सभ्यता पर काफी प्रकाश पड़ता है।यहाँ के उत्खनन एवं अनुसंधानकर्ता में एन . जी . मजूमदार , आरियल स्टीन , पिगर व्हीलर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । दयाराम साहनी की देखरेख में पंजाब में हडप्पा नामक स्थान की खुदाई हुई । यह स्थान मांटगुमरी जिले में रावी नदी के तट पर है । बाद में यह कार्य सर जार्ज मार्शल के निर्देशन में चला । उन्होंने इस अभूतपूर्व सभ्यता का ज्ञान संसार को दिया है । इस सभ्यता की विशेषता है कि यह विकसित नगरीय सभ्यता थी , जिसमें वैज्ञानिक ढंग से नगर का निर्माण हुआ । सिंधु घाटी के उत्खनन से वहाँ की सभ्यता के विभिन्न पहलुओं , अर्थात् सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक एवं धार्मिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
सामाजिक जीवन -
सिंध के लोगों के सामाजिक जीवन का विवेचन निम्न है-
1 . समाज की रचना - सिंध घाटी में प्राप्त उपकरणों और भानावशेषों से ऐसा आभास होता है कि यहाँ मातृ- प्रधान समाज था और यह चार भागों में विभक्त था-
( अ ) विद्वान - जिसमें पुरोहित , धर्मगरु , ज्योतिषी , वैद्य थे । ( ब ) योका और सैनिक - जो रक्षा का काम करते थे और लडते थे । ( स ) व्यवसायी - जिनमें व्यापारी और कृषक वर्ग था । ( द ) श्रमिक लोग - भृत्य आदि ।
2 . भोजन - सिंधु वासियों के आहार में प्रमख गेहूँ और जौ थे । खजूर की गुठलियों और अन्य अवशेषों से स्पष्ट होता है कि फलों तरकारियों का भी प्रयोग होता था और दूध के विभिन्न उपयोगों से वे परिचित थे । वे मांसाहारी थे । गाय , सूअर , भेड़ , मुगे , मछली व अंडे आदि का उपयोग करते थे । खुदाई में रोटी बनाने के साँचे भी मिले हैं , जिनसे उनके मिष्ठान प्रयोग की पुष्टि होती है ।
3 . वस्त्र एवं आभूषण - सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रयोग होता था । सादी वेशभूषा थीं । पुरुष लम्बी शाल या दुपट्टा दाएँ कंधों के ऊपर फेंककर औढ़ते थे । स्त्रियाँ सिर पर एक प्रकार का वस्त्र पहनती थीं . जो सिर के पीछे की ओर पंखे की भाँति उठा रहता था । पुरुष छोटी दाढ़ियाँ और मूंछ रखते थे । बालों को काटकर छोटा कर दिया जाता था या मोड़कर उनका जूडा बाँधा जाता था । स्त्रियाँ अपनी चोटी को कई वृत्तों में लपेटती थीं और कभी - कभी वे बालों का जूड़ा बनाकर पीछे फीते से बांध लेती थीं । धनवान स्त्री - पुरुष केशों को बाँधने के लिए सुनहरे फीतों का उपयोग करते थे । स्त्री - पुरुष आभूषणों का प्रयोग रुचिपूर्वक करते थे । हार , अंगूठियाँ , कड़े , कुंडल और बालियाँ स्त्री - पुरुष दोनों ही पहनते थे । स्त्रियों के आभूषणों में कई लड़ों वाली करधनी , कान के काँटे , कर्णफूल तथा पग - पायल मुख्य थे । कान के लटकनों तथा नाक के आभूषणों का अभाव था । आभूषण सोने - चाँदी , हाथीदाँत तथा रत्नों के होते थे । निर्धन और साधारण लोग अस्थियाँ , घोंघों , सीपों , ताँबे , काँसे तथा पक्की मिट्टी के आभूषण पहनते थे ।
स्नानागार- उत्खनन की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि एक स्नानागार की रही है । यह स्नानागार एक विशाल भवन के मध्य में है । जलाशय आयताकार है तथा 39 फुट चौड़ा व 5 फीट गहरा है । इसके प्रत्येक ओर जल पहुँचने के लिए ईंटों की सीढ़ियाँ हैं । स्नानकुण्ड के पानी को बाहर निकालने के लिए समुचित व्यवस्था की गई थी । जलाशय के भवन में घुसने के लिए छह रास्ते थे , जो जलाशय तक पहुँचते थे । जलाशय के चारों ओर बरामदे थे तथा इनके पीछे कमरे थे । प्रत्येक कमरे के समीप एक सीढ़ी है , जिससे अनुमान होता है कि जलाशय के चारों ओर भवन दो मंजिला था । इस स्नानागार के दक्षिण-पश्चिम में एक हमाम बना है , जिसमें पक्की ईंटों के अनेक आयताकार चबूतरे है । इनमें गरम जल से स्नान का प्रबन्ध रहता होगा । एक अन्य छोआ स्नानागार भी मिला है। नगर - निर्माण की सुन्दर योजना से जल और सफाई के बारे में मालूम होता है । लगता है कि इसका प्रबन्ध कोई सार्वजनिक संस्था करती होगी ।
राजनीतिक स्वरूप-
लिखित साक्ष्यों के अभाव में सिंधु -सभ्यताकालीन राजनीतिक स्थिति का निर्धारण करना अत्यंत कठिन है । उत्खनन में प्राप्त विभिन्न स्रोतों से ही तत्कालीन राजनीतिक स्थिति के विषय के अनुमान लगाया जा सकता है । सिंधु - सभ्यताकालीन प्रशासन हड़प्पा व मोहनजोदडो , दो राजधानियों के द्वारा होता था । योजनाबद्ध निर्माण कार्य को देखते हुए अनुमान किया जाता है कि नगरों में ' नगरपालिका ' जैसी कोई संस्था अवश्य रही होगी । सिन्धु - सभ्यता के निवासी शान्तिप्रिय थे , अत : इनका जीवन राजनीतिक दृष्टि से भी शान्तिपूर्ण था । अस्त्र - शस्त्रों की अत्यंत कम संख्या से भी इस बात की पुष्टि होती । है । शान्तिपूर्ण राजनीतिक स्वरूप होने के कारण तत्कालीन निवासियों का जीवन सुख - समृद्धि से परिपूर्ण था । यहाँ के निवासियों का नागरिक व राजनीतिक जीवन काफी प्रौढ रहा होगा । नागरिकता के सिद्धांत व व्यावहारिक पहलुओं का विकास हुआ था । इसलिये नगर व्यवस्था वहाँ थी । सैन्धव सभ्यता में विकेन्द्रीकृत लोकतन्त्रात्मक शासन रहा होगा । यहाँ का शासन विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था पर आधारित था और यहाँ के नगर स्वायत्तशासी रहे होंगे । मोहनजोदड़ो व हड़प्पा जैसे नगरों के अवशेषों को देखकर ऐसा लगता है कि नगर शासन जेसी व्यवस्था रही होगी । जो नगर व्यवस्था , सुरक्षा व स्वास्थ्य पर ध्यान देती थी । नगरों की स्वच्छता व सफाई की व्यवस्था थी । नगरों में पूर्णतया सुरक्षित दुर्ग थे ।
आर्थिक जीवन-
उत्खनन द्वारा प्राप्त किये गये भानावशेषों से ज्ञात होता है कि सिन्धु - सभ्यता के निवासियों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी । यद्यपि समृद्धि प्राप्त करने हेतु उन्होंने विभिन्न साधनों का प्रयोग किया था , किन्तु कृषि ही सर्वप्रमख साधन प्रतीत होता है । तत्कालीन आर्थिक - जीवन का वर्णन निम्नवत् है :
( 1 ) कृषि - सिन्धु - सभ्यता के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि ही था । गेहूँ , जौ , कपास , मटर , तिल तथा संभवतः चावल एवं अनेक फल ( खजूर , तरबूज , आदि ) उगाये जाते थे । अनाज को रखने के लिए विशाल अन्न भण्डार होते थे जिनके बाहर ही अन्न पीसने की व्यवस्था होती थी ।
( 2 ) पशुपालन - कृषि के अतिरिक्त सिन्धु - सभ्यता के निवासी पशुओ को भी पालते थे । पुरातात्विक स्रोतों से ज्ञात होता है कि वे गाय , बैल , भैंस , भेड़ , बकरी , कुत्ता आदि पालते थे । ऊंट के अवशेष भी प्राप्त होते हैं , किन्तु ऊंट पालना सम्भवतः अधिक लोकप्रिय न था । अश्व से सम्भवतः वे लोग परिचित न थे ।
( 3 ) कपड़े बुनना - सिन्धु निवासी संभवत : विश्व के सूत कातने तथा कपड़े बुनन वाले प्रथम लोग थे । उन्हें कपड़े रंगने का भी ज्ञान था । सूती तथा गरम दोनों प्रकार के कपड़े तैयार किये जाते थे ।
( 4 ) उद्योग एवं अन्य व्यवसाय - सिन्धु निवासी शिल्पकला में अत्यंत दक्ष थे । मिट्टी के असंख्य बर्तन खुदाई से प्राप्त हुए हैं जो अत्यंत सुन्दर एवं आकर्षक हैं । कुम्हार पहले चाक द्वारा उन्हें बनाते थे तत्पश्चात उन पर चित्रकारी करके भट्टी में पकाया जाता था । इन बर्तनों पर अत्यधिक चमक होती थी । मिट्टी की बनी हुई मूर्तिया एवं खिलौने आदि भी प्राप्त होते हैं । सिन्धु - सभ्यता में धातुओं के भी सुन्दर आभूषण बनाये जाते थे । धातुओं के अतिरिक्त सीप , शंख , हाथी दाँत आदि के भी आभूषण बनते थे । खुदाई में तराजू भी प्राप्त हुई तथा अनेक बाँट भी मिले हैं । सबसे छोटा बाट 13 . 64 ग्राम का है । सीप का बना हुआ एक स्केल भी प्राप्त हुआ है जिसके आधार पर विद्वानों का मत है कि स्केल की लम्बाई 13 . 2 इंच होती थी । ( 5 ) व्यापार - सिन्धु - निवासियों के विदेशों से भी व्यापारिक संबंध थे । विदेशों से सम्पर्क थल एवं जल दोनों ही मार्गों से था । थल पर बैलगाड़ियों एवं जल में जहाजों का प्रयोग किया जाता था । विद्वानों का विचार है कि सिन्धु - निवासी सोना , चाँदी , सीसा , तांबा आदि आयात करते थे । सम्भवत : दासों का व्यापार भी होता था । सिन्धु निवासी विदेशों को निर्यात कौन - सी वस्तुएँ करते थे , यह निश्चित करना अत्यंत कठिन है ।
नगर योजना-
1.सिन्धुवासियों की नगर योजना - मोहन जोदड़ो की खुदाई एवं हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त भग्नावशेषों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये लोग नगर एवं भवन निर्माण कला में दक्ष थे । खुदाई में प्राप्त भग्नावशेष देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नगर एक निश्चित नियोजन के आधार पर बसाया गया था । सड़कें और गलियाँ सीधी बनी होती थीं तथा एक - दूसरे को समकोण पर काटती थीं । सड़कों से छोटी - छोटी शाखाएँ गलियों के रूप में निकलती थीं । कहीं - कहीं पर तिराहे भी मिले हैं । सबसे अधिक चौडी सड़क लगभग 11 मीटर की थी , जिसमें इसकी आधी चौडाई के मार्ग पथिकों के चलने के लिए दोनों ओर बने हुए थे । सँकरी से संकरी गली की भी चौड़ाई लगभग डेढ मीटर से कम नहीं थी ।
2 . भवन निर्माण - सिन्धु घाटी के निवासियों की भवन - निर्माण कला भी उच्चकोटि की थी । भवनों में प्लास्टर मिट्टी का जिप्सम का होता था । मकानों में दरवाजों और खिड़कियों की उचित व्यवस्था होती थी । खुदाई में राजकीय एवं सार्वजनिक इमारतों के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं । हड़प्पा में समानान्तर चतुर्भुज जैसे आकार की बहुत बड़ी इमारत मिली है । एक गढ़ और कुछ भांडागार भी मिले हैं । मोहनजोदडों से भी एक स्नानकुंड प्राप्त हुआ है । स्नान - कुंड के अतिरिक्त दो और भवनों के ध्वंसावशेष प्राप्त हए हैं । एक भवन 150 फीट लम्बा और 75 फीट चौड़ा था । यह एक विशाल कुंडागार था । दूसरा भवन 230 फीट लम्बा और 79 फीट चौड़ा था । इस भवन में राज्य के राज्यपाल रहते होंगे । खदाई से जो तथ्य सामने आए हैं . उन्हें अध्ययन की सुविधा के लिए निम्नलिखित शीर्षकों में बाँटा जा सकता है
( अ ) नागरिकों के आवास - सड़क के दोनों और नागरिकों के रहने के मकान थे । ये मकान योजनाबद्ध ढंग से बने थे । उनकी नीवें गहरी थीं , दीवारें भी मजबूत ईंटों की मोटी बनी हुई थीं । मकान छोटे - बड़े और पक्के - कच्चे सभी प्रकार के थे । मकानों में हवा - प्रकाश की समुचित व्यवस्था थी । इसके लिए पर्याप्त दरवाजे और खिड़कियाँ थीं । मकान दो से तीन कमरों तक के होते थे । भवन प्राय : दो मंजिले होते थे और ऊपर की मंजिल में जाने के लिए सीढ़ियाँ भी थीं । आँगन और घर के फर्श पक्की ईंटों के होते थे । स्नानागार व गंदे तथा वर्षा के पानी को निकालने के लिए नालियाँ , अग्निकुण्ड और कूड़ा - करकट रखने के घिरौने थे । प्रत्येक घर में रसोई - घर , स्नानागार , शौचालय , खुला आँगन , कुएँ आदि रहते थे ।
( ब ) सार्वजनिक एवं राजकीय भवन - सिन्धु सभ्यता संबंधी प्रदेशों के उत्खनन से यह तथ्य भी प्रकाश में आया है कि साधारण मकानों के अतिरिक्त यहाँ पर राजकीय एवं सार्वजनिक भवन भी थे । मोहन जोदड़ों में एक नदी थी , जिसका निर्माण कृत्रिम पहाड़ी पर किया गया था । नदी की बाढ़ से रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक ऊँचा बाँधा था । इनमें अनेक मीनारें थीं । गढ़ी के अन्दर चबूतरे पर सुन्दर सजावट थी ।
उपरोक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता का स्वरूप विकसित एवं सव्यवस्थित था । नगर नयोजन सार्वजनिक समिति के हाथों में रहा होगा अन्यथा नगर विन्यास इतना सुन्दर सम्भव नहीं था ।
Thanks sir for sharing this information.
ReplyDeleteSindhu Sabhyata Gk In Hindi