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**गणेश चतुर्थी** एक प्रमुख हिंदू त्योहार है

भगवान गणेश, जिन्हें गजानन, विघ्नहर्ता, लंबोदर और विनायक जैसे नामों से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय और पूजनीय देवताओं में से एक हैं। उन्हें समस्त विघ्नों का नाशक, बुद्धि, ज्ञान और समृद्धि के देवता माना जाता है। गणेश जी का सिर हाथी का है और उनका वाहन मूषक (चूहा) है।  गणेश जी की पूजा किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में की जाती है, क्योंकि उन्हें शुभारंभ के देवता माना जाता है। उनकी उपासना से सभी कार्य बिना किसी विघ्न या बाधा के सफल होते हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर की जाती है, जब भक्त उनकी मूर्ति की स्थापना कर विशेष आराधना करते हैं।  गणेश जी की कथाएँ और उनका महत्व भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनके जन्म की कई कथाएँ हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, उन्हें माता पार्वती ने अपने उबटन से बनाया था और शिवजी द्वारा उनका सिर काटे जाने के बाद उन्हें हाथी का सिर लगाया गया था। **गणेश चतुर्थी** एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इसे विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा-अर्चना और आराधना के लिए मन...

पर्युषण पर्व

  पर्युषण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे आत्मशुद्धि, तपस्या, और आत्मचिंतन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः दो प्रमुख जैन संप्रदायों, श्वेतांबर और दिगंबर, द्वारा मनाया जाता है।  **महत्व और उद्देश्य:** पर्युषण का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि, आत्मसंयम, और अहिंसा के मार्ग पर चलकर अपने कर्मों का क्षय करना है। इस दौरान जैन अनुयायी व्रत, उपवास, स्वाध्याय, और प्रार्थना के माध्यम से आत्मा की शुद्धि की ओर अग्रसर होते हैं। **श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा:** - **श्वेतांबर जैन:** इस संप्रदाय में पर्युषण पर्व को 'अष्टान्हिका पर्व' या 'परीषहा पर्व' कहा जाता है और यह आठ दिन तक चलता है। इस पर्व का समापन संवत्सरी के दिन होता है, जिसे क्षमापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। - **दिगंबर जैन:** दिगंबर परंपरा में इसे 'दशलक्षण पर्व' कहा जाता है और यह दस दिनों तक चलता है। इस दौरान अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह आदि दस धर्मों का पालन किया जाता है। **अनुष्ठान:** पर्युषण के दौरान जैन अनुयायी कठोर उपवास करते हैं, जिसमें एक दिन, तीन दिन, या पूरे आठ/दस दिन का उ...

पीपल के पेड़ का महत्व।

पीपल के पेड़ का महत्व। पीपल का पेड़, जिसे फाइकस रिलिजिओसा भी कहा जाता है, अंजीर के पेड़ की एक प्रजाति है जिसे कई संस्कृतियों में पवित्र माना जाता है।  यह भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के कुछ हिस्सों का मूल निवासी है। हिंदू धर्म में, पीपल के पेड़ को विष्णु का प्रतीक माना जाता है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक है।  इस पेड़ में भगवान शिव और देवी लक्ष्मी का वास भी माना जाता है।  इसकी अक्सर हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती है, जो इसके तने के चारों ओर धागे बांधते हैं और इसे पानी, दूध और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं। बौद्ध धर्म में, पीपल का पेड़ भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बुद्ध ने एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करते हुए आत्मज्ञान प्राप्त किया था, जिसे अब बोधि वृक्ष के रूप में जाना जाता है। पीपल के पेड़ को इसके औषधीय गुणों के लिए भी महत्व दिया जाता है।  इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में अस्थमा, डायरिया और मधुमेह जैसी विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।  इसके अतिरिक्त दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में पीपल के पेड़ की पत्तियों का...

भारत पर बाबर का आक्रमण

भारत पर बाबर के आक्रमण करने का मुख्य कारण बाबर तैमूर के कार्यों से अत्यन्त ही प्रभावित हुआ था । उसने देखा था कि किस प्रकार तैमूर ने भारतीय धन और संसाधनों का सहारा लेकर अपने मध्य एशियाई साम्राज्य को सुदृढ़ किया था तथा राजधानी को कला - कौशल का केन्द्र बना दिया था । इतना ही नहीं , पंजाब का एक भाग तो तैमूर एवं उसके वंशजों के अधीन रहा भी था । अतः , अफगानिस्तान पर अधिकार करते ही वह पंजाब पर अधिकार करना अपना कानूनी अधिकार मानने लगा । बाबर के समक्ष एक अन्य कारण भी था , जिसने उसे पर आक्रमण करने को प्रेरित किया । वह देख चुका था कि उसके राज्य का विस्तार मध्य एशिया में उत्तर - पश्चिम में संभव नहीं था । इसलिए , एक महत्वाकांक्षी शासक होने की वजह से उसने दक्षिण - पूर्व , अर्थात् भारत की तरफ पाँव फैलाकर एक साम्राज्य की स्थापना करने का निश्चय किया ।  भारत की राजनीतिक स्थिति -  भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति बाबर की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए पूरी तरह उपयुक्त थी । उस समय दिल्ली सल्तनत पतनोन्मुख था । दिल्ली की गद्दी पर इब्राहीम लोदी था । वह एक अयोग्य एवं अप्रिय शासक था । अनेक अफगान सरदार...

सोलह महाजनपद- बौद्ध ग्रंथ अगुत्तर निकाय तथा जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में सोलह महाजनपदों के सूची दी गई है ।

छठी शताब्दी ई . पू . में भारत में अनेक प्रादेशिक राज्यों का उत्कर्ष हुआ । इनको महाजन पद कहा गया है । इस काल में सोलह महाजन पदों का उल्लेख मिलता है । इस काल में ही बुद्ध तथा महावीर हुए । भारत पर ईरानियों के आक्रमण हुए । उन्होंने भारत के कुछ भागों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था । महाभारत में पाण्डवों की विजय के फलस्वरूप उत्तरी भारत में जो राजनीतिक एकता स्थापित हुई थी , वह अधिक समय तक कायम न रह सकी । शीघ्र ही प्रादेशिक राजवंश पुनः स्वतंत्र हो गये और अपने - अपने राज्यों के विस्तार के लिए संघर्ष करने लगे । छठवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में कोई सर्वोच्च सत्ता नहीं थी । सोलह बड़े - बड़े राज्य (षोडशमहाजनपद ) थे , उनके अतिरिक्त अन्य अनेक छोटे - छोटे राज्य थे । अर्थ - ' महाजनपद ' के मूल में ' जनपद ' शब्द निहित है । ' जन ' और ' पद ' इन दो की सन्धि से जनपद शब्द बना है । जनपद संस्कृति आर्य लोगों की देन है ।आर्यो  की कई शाखाएँ थीं तथा प्रत्येक शाखा ' जन ' कहलाती थी ।  सोलह महाजनपद- बौद्ध ग्रंथ अगुत्तर निकाय तथा जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में सोलह मह...

जैन धर्म

जैन धर्म की शिक्षा  1. निवृत्ति मार्ग - बौद्ध धर्म की भांति जैनधर्म भी निवृत्तिमार्गी है । जैन धर्म के अनुसार संसार के समस्त सुख दुःखमूलक हैं । मनुष्य के दुखों का मूल कारण उसकी तृष्णा है । वह आजीवन तृष्णा से घिरा रहता है । जैन धर्म के अनुसार मनुष्य का वास्तविक सुख संसार- त्याग में निहित है ।  2. जीव और अजीव - जैन धर्म के अनुसार जीव और अजीव शाश्वत अनादि और अनन्त हैं । इनसे मिलकर ही यह जगत् बनता है । जीव स्वभावतः नित्य , चेतन , पूर्ण व अनन्त ज्ञानमय है । जीव चैतन्य द्रव्य है और अजीव चैतन्य रहित है ।  3. बन्धन और मुक्ति - बन्धन का अर्थ है - जीवन का अजीव द्वारा आवरण । जीव और अजीव के सम्बन्ध का माध्यम ' कर्म ' है । बन्धन के मुख्य कारण हैं - राग और द्वेष । राग और देव जीव में आसक्ति पैदा करते हैं । अजीव के जीव की ओर चलने की प्रक्रिया को जैन धर्म में ' आरव ' कहा गया है ।  4. ' संवर ' और ' निर्जरा '- जैन धर्म के अनुसार किये गये कर्मों का फल भोगे बिना मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता । अत : मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक है के मनुष्य अपने पूर्व जन्म के कर्...

हिन्दू संस्कार

संस्कार का अर्थ उन पवित्र अनुष्ठानों से माना जाता है , जो शारीरिक , बौद्धिक , सामाजिक एवं आध्यात्मिक शुद्धि के लिये किये जाते हैं । हिन्दू परम्परा के अनुसार संस्कारों को किये बिना व्यक्ति का जीवन परिशुद्ध एवं परिपूर्ण नहीं माना जाता है । हिन्दू शास्त्रों की मान्यता है कि संस्कारों के द्वारा ही सुसंस्कृत मनुष्य का विकास हो जाता है ।   1. जैमिनी के अनुसार , " संस्कार वह प्रक्रिया है , जिसके करने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के योग्य हो जाता है । "  2. वीर मित्रोदय के अनुसार- " संस्कार एक विलक्षण योग्यता है , जो शास्त्रों में वर्णित क्रियाओं के सम्पादन से उत्पन्न होती है । "  हिन्दू संस्कार:-  1. गर्भाधान - हिन्दू धर्म के अनुसार पुत्र को जन्म देना एक पवित्र धार्मिक कृत्य है । यदि कोई पुरुष अपने शिशु को विधिवत् अपनी पत्नी के गर्भ में नहीं रखता है , तो पाराशर के अनुसार वह ब्रह्महत्या का भागी होता है ।  2. पुंसवन - ' पुंसवन ' शब्द का प्रयोग अथर्ववेद में मिलता है , जिसका अर्थ पुत्र संतान को जन्म देने से है । पुंसवन संस्कार का उद्देश्य पुत्र संतान की प्राप...